भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि / पद्माकर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:52, 27 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }}<poem> सम्पति सुमेर ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सम्पति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि ,
तुरंत लुटावत बिलम्ब उर धारै ना .
कहै ‘पदमाकर’ सुहेम हय हाथिन के ,
हल्के हजारन के बितऋ बिचारे ना .
दीन्हें गज बकस महीप रघुनाथ राव ,
पाय गज धोखे कहूँ काहू देइ डारै ना .
याही डर गिरजा गजानन को गोय रही ,
गिरतें गरेतें निज गोद से उतारे ना .