भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सखी हम काह करैं कित जायं /भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 28 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }}<poem> सखी हम क...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सखी हम काह करैं कित जायं .
बिनु देखे वह मोहिनी मूरति नैना नाहिं अघायँ .
बैठत उठत सयन सोवत निस चलत फिरत सब ठौर .
नैनन तें वह रूप रसीलो टरत न इक पल और.
सुमिरन वही ध्यान उनको हि मुख में उनको नाम .
दूजी और नाहिं गति मेरी बिनु मोहन घनश्याम .
सब ब्रज बरजौ परिजन खीझौ हमरे तो अति प्रान .
हरीचन्द हम मगन प्रेम-रस सूझत नाहिं न आन .