Last modified on 29 अगस्त 2012, at 19:03

नाथ! क्या राधेश्याम कहाये! / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:03, 29 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-वृंदा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


नाथ! क्या राधेश्याम कहाये!
एक बार राधा से मिलने भी व्रज लौट न पाये!

कभी विचार उठा यह मन में
कैसी है वह वृन्दावन में
वचन दिए जो कुंजभवन में
जाकर सभी भुलाये!

धर्म आपने सब से पाला
जिसने जो माँगा दे डाला
एक मुझे ही विष का प्याला
देना क्यूँ रह जाये!

व्रज में पुनः जन्म यदि लूँगी
मन मे तो धुन यही रटूँगी
पर पनघट पर पग न धरूँगी
मुरली लाख लुभाये

नाथ! क्या राधेश्याम कहाये!
एक बार राधा से मिलने भी व्रज लौट न पाये!