भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब तो छोड़ नहीं जायेंगे! / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 29 अगस्त 2012 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अब तो छोड़ नहीं जायेंगे!
अबकी बिछुड़ी फिर न मिलूँगी लाख यहाँ आयेंगे

टूट गिरी जो कलिका भू पर
फिर कब उसको पाता तरुवर!
लहर फिरी जो तट से मिलकर
उसको लौटायेंगे

'भले द्वारकाधीश कहायें
इस दुखिया को छोड़ न जायें
नाथ! साथ वृन्दावन आयें
मुझे तभी पायेंगे

'प्रिया आपकी तभी कहाऊँ
बनकर वधु द्वारिका आऊँ
देर हुई आज्ञा दें जाऊँ
संगी अकुलायेंगे

अब तो छोड़ नहीं जायेंगे!
अबकी बिछुड़ी फिर न मिलूँगी लाख यहाँ आयेंगे