भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सहज हो प्रभु साधना हमारी / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:08, 29 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सब कुछ कृष...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सहज हो प्रभु साधना हमारी
सहज रहे जीवन और सहज हो मरण
सहज सदा चिंतन हो, सहज आचरण
सहज-सहज कर लें हम वरन वे चरण
शरण-क्लेशहारी
आतप-हिम-वात सभी हँस-हँसकर सहें
जैसे तू रखता हो वैसे ही रहें
तेरी ही सुनें और तुझसे ही कहें
भार हो न भारी
सहज हो प्रभु साधना हमारी