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जब भी नाम हमारा आये/ गुलाब खंडेलवाल
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जब भी नाम हमारा आये
नयन झुका, मुँह मोड़, दाँत से रहना होँठ दबाये
साँस दीर्घ भी लेना ऐसे दोनों हाथ उठाये
समझें जमुहाई सब, कोई आँसू देख न पाये
पलकें मलती रजकण के मिस, मन की व्यथा छिपाये
उँगली की मुद्रिका फिराती रहना दायें -बायें
जब भावों का ज्वार न सँभले छाती रूँध सी जाये
कहना उठ कर- अब चलना है साँझ हुई घन छाये