भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुमने वंशी तो दी कर में / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:45, 30 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह= नहीं विर...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तुमने वंशी तो दी कर में
पर उसका क्या करूँ नहीं यदि गूँज उठे अंतर में !
अधरों पर ही नाचा करता
राग ह्रदय में नहीं उतरता
दीप द्वार पर तो हूँ धरता
तिमिर भरा है घर में
करुणामय ! बस इतना वर दो
उर में श्रद्धा के स्वर भर दो
भाव अमरता के दृढ़ कर दो
रहें न प्राण अधर में
जिसने तुम्हें स्वयम् में जाना
खेल मरण को उसने माना
चिंता क्यों हो वस्त्र पुराना
यदि बदले पल भर में !
तुमने वंशी तो दी कर में
पर उसका क्या करूँ नहीं यदि गूँज उठे अंतर में !