भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देव / परिचय
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:49, 30 अगस्त 2012 का अवतरण
महाकवि देव के माता-पिता के नाम का पता नहीं चलता। इनके मकान के अवशेष इटावा से 30 मील दूर कुसमरा ग्राम में बताए जाते हैं। इनके वंशज अपने को 'दुबे बतलाते हैं। देव ने 16 वर्ष की आयु से ही काव्य सृजन आरंभ किया तथा अनेक राजाओं और रईसों का सम्मान प्राप्त किया, किन्तु इनकी प्रतिभा के अनुरूप राजाश्रय इन्हें प्राप्त नहीं हुआ। देव रीति-काल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने रीतिकालीन काव्य पध्दति पर लक्षण-ग्रंथ लिखे जिससे ये 'आचार्य कहलाए। इनके ग्रंथों की संख्या 72 बताते हैं, जिनमें 'भाव-विलास, 'भवानी-विलास, 'कुशल-विलास, 'रस-विलास, 'प्रेम-चंद्रिका, 'सुजान-मणि, 'सुजान-विनोद तथा 'सुख-सागर तरंग आदि 19 ग्रंथ प्राप्त हैं। इनमें देव की मौलिक कल्पना-शक्ति तथा परिष्कृत सौंदर्य-बोध का दिग्दर्शन है। इनकी भाषा प्रवाहमय और साहित्यिक है। अंतिम दिनों में ये भक्ति एवं वैराग्य की ओर उन्मुख हो गए थे।
ये रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि माने जाते हैं . ‘भाव-विलास’ माना जाता है की इन्होंने १६ वर्ष की अवस्था में लिखा था.
इस अनुसार देव का जन्म संवत १७३० में ठहरता है. ये कई राजा –रईसों के दरबार में रहे लेकिन इनकी चित्तवृति कहीं एक जगह रमी नहीं .
पर्यटन से इनका ज्ञान व्यापक औए विस्तृत हो गया . इन्होने अपना ‘सुख-सागर तरंग’ नाम का ग्रन्थ पिहानी के अकबर अली खां को समर्पित किया था .इस आधार पर इनका संवत १८२४ टक जीवित रहना सिद्ध होता है .