भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त हांडी पे चढ़ाया चाहिये / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
वक्त हांडी पे चढ़ाया चाहीये
ख़्वाब इक रंगीं पकाया चाहीये।
हाल-ए-दुनिया देख लेंगे एक दिन
फुर्सती लम्हा निभाया चाहीये।
जो दुआ सा ज़िन्दगी में आ गया
ज़िन्दगी में, बस, बसाया चाहीये।
ये जो बारिश है, करम अल्लाह का
है करम तो, बस, नहाया चाहीये।
है कोई जन्नत अगर उस पार तो
मौज में इक बार जाया चाहीये।
नींद तारी हो गयी माहौल पर
ये गज़र अब तो बजाया चाहीये।
शेर ये, खरगोश खुद को मानता
आईना इसको दिखाया चाहीये।
खोट का सिक्का चलेगा एक दिन
एक दिन वो आज लाया चाहीये।
एक आसन, इस मुसल्ला जल गये
तम्बुओं को अब उठाया चाहीये।