भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुझको पानी सा कर गया पानी / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:35, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



मुझको पानी सा कर गया पानी
जब भी आंखों में भर गया पानी।

राज जग जीतने के बतलाते
जिनकी आंखों का मर गया पानी।

बात महफिल में हक की होती है
जाने किस का उतर गया पानी।

कल जो सैलाब था जमाने पर
अब समंदर के घर गया पानी।

दौर के तौर को बदल देगा
जब भी सर से गुज़र गया पानी।

कैसी हमवार कर गया दुनिया
अब तो जाने किधर गया पानी।

अब भला क्या हिसाब करना है
राह होगी जिधर गया पानी।