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रस्ते-रस्ते बात मिली / अश्वनी शर्मा
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रस्ते-रस्ते बात मिल
नुक्कड़-नुक्कड़ घात मिली।
चिंदी-चिंदी दिन पाये हैं
कतरा-कतरा रात मिली।
सिला करोड़ योनियों का है
ये मानुष की जात मिली।
बादल लुकाछिपी करते थे
कभी-कभी बरसात मिली।
चाहा एक समन्दर पाना
कतरों की औकात मिली।
जीवन का जीना चाहा पर
सपनों की सौगात मिली।
वक्त जहां मुट्ठी से फिसला
यादों की ख़ैरात मिली।
उस चौराहे शह दे आये
इस चौराहे मात मिली।