भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सन्नाटे पर नाज़ नहीं / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 31 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सन्नाटे पर नाज़ नहीं
क्यों कोई आवाज़ नहीं।
किसने कतरे पर पंछी के
क्यों कोई परवाज़ नहीं।
आग धधकती हर सीने में
क्यों कोई आगाज़ नहीं।
रेंग-रेंग कर चलने वाला
अपना तो अंदाज़ नहीं।
शहनाई के दीवानों का
रणभेरी तो साज़ नहीं।
दो-दो हाथ वक्त से कर ले
अब ऐसे जांबाज़ नहीं।
दमदारी बीमारी है अब
दम भरते अल्फाज़ नहीं।