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हर लमहा मुझपर उधार ही रहा / नीना कुमार

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हर लमहा मुझ पर उधार ही रहा
वक़्त का सदा मैं कर्ज़दार ही रहा

थामना चाहा था कुछ कतरे ज़िन्दगी
पर दरया-ए-ज़ीस्त<ref>ज़िन्दगी का दरिया</ref> तेज़धार ही रहा

जब तर्ज़-ए-हयात<ref>ज़िन्दगी की धुन</ref> को हर्फ़<ref>अक्षर</ref> मिल गए
तब साज़ पर कहाँ इख्तियार<ref>नियंत्रण</ref> ही रहा

गुमराह करे जिसने ख्वाबों के काफिले
उस राह-ए-दश्त<ref>रेगिस्तान की राह</ref> पे क्यूँ ऐतबार ही रहा

आसमानों में कहाँ नशेमन<ref>घर</ref> बनाएँ हम
असल में शजर<ref>पेड़</ref> का गिरफ्तार ही रहा

शब्दार्थ
<references/>