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फिक्रमंदों का अज़ब दस्तुर है / अश्वनी शर्मा

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फिक्रमंदों का अज़ब दस्तूर है
ज़िक्र हो बस फिक्र का मंजूर है।

जो कभी इक शे‘र कह पाया नहीं
वो मयारी हो गया, मशहूर है।

जो किसी परचम तले आया नहीं
वो नहीं आदम, भले मज़बूर है।

मोड़ ओ नुक्कड़ जहां के देख लो
ये कंगूरा तो बहुत मगरूर है।

चंद सांसों का सिला जो ये मिला
चौखटों की शान का मशकूर है।

ये कसीदे शान में किसकी पढ़ें
रोशनी की हर वजह बेनूर है।

वो बहेगा, दर्द देगा बारहा
फितरतन जो बस महज नासूर है।