भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैंने जाने लिखा क्या / अश्वनी शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:40, 1 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



मैंने जाने लिखा क्या
तुमने जाने पढ़ा क्या।

अजां होती रही है
कभी इस को सुना क्या।

मेरा नक्शा अलग था
मकां सा ये गढ़ा क्या।

सुनहरे ख़्वाब थे कुछ
हकीकत में रचा क्या।

ये बस्ती भूतहा क्यों
कोई इसमें बसा क्या।

ये आंसू पी के जीना
कभी तुमको दिखा क्या।

ज़हर का घूंट शिव है
कभी तुमने पिया क्या।

हजारों बात सुन ली
कभी दिल पे लिया क्या।

है जीना एक पल का
वो पल तुमने जिया क्या।