भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब जागो जीवन के प्रभात / जयशंकर प्रसाद

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 1 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद |संग्रह=लहर / जयशंकर प्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब जागो जीवन के प्रभात !
           वसुधा पर ओस बने बिखरे
           हिमकन आँसू जो क्षोभ भरे
           उषा बटोरती अरुण गात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
           तम नयनों की ताराएँ सब-
           मुद रही किरण दल में हैं अब,
           चल रहा सुखद यह मलय वात !
अब जागो जीवन के प्रभात !
           रजनी की लाज समेटो तो,
           कलरव से उठ कर भेंटो तो ,
           अरुणाचल में चल रही बात,
अब जागो जीवन के प्रभात !