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पद१ / दादू दयाल

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घीव दूध में रमि रह्या व्यापक सब हीं ठौर .
दादू बकता बहुत है मथि काढै ते और .
यह मसीत यह देहरा सतगुरु दिया दिखाई .
भीतर सेवा बन्दगी बाहिर कहे जाई .
दादू देख दयाल को सकल रहा भरपूर.
रोम-रोम में रमि रह्या तू जनि जाने दूर .
केते पारखि पचि मुए कीमति कही न जाई.
दादू सब हैरान हैं गूँगे का गुड़ खाई.
जब मन लागे राम सों तब अनत काहे को जाई.
दादू पाणी लूण ज्यों ऐसे रहे समाई.