भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ब्रह्म तें पुरुष अरु / सुंदरदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:17, 2 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुंदरदास }} Category:पद <poem> ब्रह्म तें ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ब्रह्म तें पुरुष अरु पकृति प्रगट भई,
         प्रकृति तें महत्तत्व,पुनि अहंकार है .
अहंकार हू तें तीन गुन सत,रज,तम,
         तमहू तें महाभूत विषय पसर है .
रजहू तें इंद्री दस पृथक पृथक भई,
         सत्तहू तें मद,आदि देवता विचार है .
ऐसे अनुक्रम करि शिष्य सूँ कहत गुरु,
         सुंदर सकल यह मिथ्या भ्रमजार है .