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बिना बात की बातें कब तक / अश्वनी शर्मा

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बिना बात की बातें कब तक
सोई जागी रातें कब तक।

इक पूरा जीवन जीना है
हर कोने से घातें कब तक।

जश्न अगर हो पूरा तो हो
बिना बाज़ा बारातें कब तक।

इक लट्टू है, एक झुनझुना
माने ये सौगातें कब तक।

सहरा की किस्मत भी बदलें
थकी-थकी बरसातें कब तक।

कोई तो सच का हामी हो
पागल हुई जमातें कब तक।

आदम होने का हक मांगा
नापेंगे औकातें कब तक।

अगर वज़ीरों से हो, तो, हो
इन प्यादों से मातें कब तक।