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दाढ़ी के रखैयन की दाढ़ी सी रहत छाती / भूषण
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डाढ़ी के रखैयन की डाढ़ी सी रहति छाती,
बाढ़ी मरजाद जसहद्द हिंदुवाने की.
कढ़ी गईं रैयत के मन की कसक सब,
मिटि गईं ठसक तमाम तुकराने की.
हुश्न भनत दिल्लीपति दिल धक धक,
सुनि सुनि धाक सिवराज मरदाने की.
मोटी भई चंडी,बिन चोटी के चबाये सीस,
खोटी भई सम्पति चकत्ता के घराने की.