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अब भी ऐसे कई जियाले हैं / अश्वनी शर्मा
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अब भी ऐसे कई जियाले हैं
बहुत मसरूफ फिर भी ठाले हैं
वक्त तो आदतन ही बहता हैं
एक लम्हा मगर संभाले हैं।
सूप ये देखिये तो कैसा हैं
हमने अहसास कुछ उबाले हैं।
वो जो सूरज को फेंक आये हैं
उनके हाथों में अब उजाले हैं।
इन मुंडेरों पे जो फुदकते हैं
ये कबूतर ही हमने पाले हैं।
मंज़िले तय तो की कई लेकिन
हासिलों में फकत ये छाले हैं।
हमने लम्हात जी के देखे जो
वो ही सब आपके हवाले हैं।