भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द कहां बेमानी होंगे / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:19, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
शब्द कहां बेमानी होंगे
बस अनकही कहानी होगे।
वक्त हमें जितना घिस देगा
हम उतने लासानी होंगे।
रस्मों को तोड़ा गर मैंने
जुमले कई जुबानी होंगे।
घर की नींव हिली गर थोड़ी
दावे कुछ दीवानी होंगे।
जश्न कटे नाखूनों का कर
लोग कई बलिदानी होंगे।
तिल का ताड़ बना सकते जो
लोग वही कुछ ज्ञानी होंगे।
वही मशालें ढो पायेंगे
जो थोड़े दरम्यानी होंगे।