भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोस्तों की यूं कमी खलती नहीं / अश्वनी शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:23, 4 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अश्वनी शर्मा |संग्रह=वक़्त से कुछ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
दोस्तों की यूं कमी खलती नहीं
दोस्ती लेकिन कहीं मिलती नहीं।
मैं बड़ा या तू बड़ा आ नाप लें
दोस्ती में ये अदा चलती नहीं।
बेसबब बैठक औ बहसें शाम की
शाम वैसी यार अब ढलती नहीं।
रात भर झगड़े, सुबह ढूंढा किये
बेकली अब इस कदर पलती नहीं।
छीन कर खा जाये लड्डू गोंद का
हूक सी दिल में कहीं उठती नहीं।
एक हो पर दर हकीकत यार हो
ज़िन्दगी फिर बोझ सी लगती नहीं
मैं तेरा कर दूं, तू मेरा काम कर
ये जरूरत दोस्ती बनती नहीं।