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गाते-गाते गान तुम्हारा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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जाने कब मैं बाहर निकली गान तुम्हारे ही गाते--
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।
भूल गई हूँ जाने कब से चाहत तुम्हारी मन में--
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।
झरना जैसे बाहर निकलता
किसकी चाहत नहीं जानता
वैसे ही आई हूँ दौड़ी
जीवनधारा के संग बहती
यह तो आज की नहीं, हाँ आज की बात नहीं।
कितने ही नामों से रही पुकारती
कितनी हीं छवियां रही आँकती
जाने किस आनंद में चलती रही
उसका ठिकाना पाए बिना--
यह तो आज की नहीं,हाँ आज की बात नहीं।
पुष्प जैसे प्रकाश के लिए
काटे अबोध जगकर के रात
वैसे ही तुम्हारी चाहत में
मेरा हृदय पड़ा है बिछकर
यह तो आज की नहीं,हाँ आज की बात नहीं।