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तुम लोगों ने सुनी नहीं क्या / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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तुमने सुनी नहीं क्या सुनी नहीं, उसके पैरों की ध्वनि
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है.
युग-युग में, पल-पल में दिन-रात
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है.
गाए हैं गान जब भी जितने
अपनी धुन में पागल होकर
सकल सुरों में गूँजित उसकी ही
आगमनी--
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है.
युगों-युगों से फागुन-दिन में, वन के पथ पर
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है.
सावन के अनगिन अंधकार में बादल-रथ पर
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा है.
दुख के बाद, चरम दुख में
उसकी ही पगध्वनि आती हिय में
सुख में जाने कब परस कराता
पारसमणि.
वह तो आ रहा है, आ रहा है, आ रहा.