भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वक्त-१ /गुलज़ार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह=रात पश्मीने की / ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं उड़ते हुए पंछियों को डरता हुआ
कुचलता हुआ घास की कलगियाँ
गिराता हुआ गर्दनें इन दरख्तों की,छुपता हुआ
जिनके पीछे से
निकला चला जा रहा था वह सूरज
तआकुब में था उसके मैं
गिरफ्तार करने गया था उसे
जो ले के मेरी उम्र का एक दिन भागता जा रहा था