भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असहयोग कर दो / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:31, 23 सितम्बर 2012 का अवतरण
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
कठिन है परीक्षा न रहने क़सर दो,
न अन्याय के आगे तुम झुकने सर दो ।
गँवाओ न गौरव नए भाव भर दो,
हुई जाति बेपर है तुम इसको पर दो ।।
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।
हृदय चोट खाए दबाओगे कब तक,
बने नीच यों मार खाओगे कब तक,
तुम्हीं नाज़ बेजा उठाओ कब तक,
बँधे बन्दगी यों बजाओगे कब तक ।
असहयोग कर दो ।
असहयोग कर दो ।।