भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी क्या है / फ़िराक़ गोरखपुरी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 25 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी |संग्रह= }} [[Category:ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी क्या है,ये मुझसे पूछते हो दोस्तों.
एक पैमाँ१ है जो पूरा होके भी न पूरा हो.

बेबसी ये है कि सब कुछ कर गुजरना इश्क़ में.
सोचना दिल में ये,हमने क्या किया फिर बाद को.

रश्क़ जिस पर है ज़माने भर को वो भी तो इश्क़.
कोसते हैं जिसको वो भी इश्क़ ही है,हो न हो.

आदमियत का तक़ाज़ा था मेरा इज़हारे-इश्क़.
भूल भी होती है इक इंसान से,जाने भी दो.

मैं तुम्हीं में से था कर लेते हैं यादे-रफ्तगां२.
यूँ किसी को भूलते हैं दोस्तों,ऐ दोस्तों !

यूँ भी देते हैं निशान इस मंज़िले-दुश्वार का.
जब चला जाए न राहे-इश्क़ में तो गिर पड़ो.

मैकशों ने आज तो सब रंगरलियाँ देख लीं.
शैख३ कुछ इन मुँहफटों को दे-दिलाक चुप करो.

आदमी का आदमी होना नहीं आसाँ 'फ़िराक़'.
इल्मो-फ़न४,इख्लाक़ो-मज़हब५ जिससे चाहे पूछ लो.

१. प्रतिज्ञा २. पुरानी यादें ३. धर्मोपदेशक ४. ज्ञान और कला ५. सदाचार और धर्म