भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नव यौवन अभिरामा / विद्यापति

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:23, 26 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विद्यापति }} <poem> कि आरे, नव यौवन अभि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कि आरे, नव यौवन अभिरामा !
जत दखल तत कहहि न पारिअ छलो, अनुपम एक ठामा !

हरिन इन्दु अरविन्द करनी हेम पिक बुझल अनुमानी !
नयन बयन परिमल गति तनुरुची ओ गति सुललित बानी !

कुचजुग उपर चिकुर फूजी पसरल ना अरुझाएल हारा !
जनि रे सुमेरु ऊपर मिली उगल चाँद विहीन सबे तारा !

लोल कपोल लुलित मणि - मुंडल अधर बिम्ब अध् जाई !
भजहु भमर नासापुट सुन्दर से देखि कीर लजाई !

भनहिं विद्यापति से वर नागर आन न पाबए कोई !
कंस दलन नारायण सुन्दर तसु रंगीनि पए होई !