भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम नहिं गौरी शिब के / मैथिली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:05, 27 सितम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=विद्यापति }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=मैथि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: विद्यापति


हम नहिं गौरी शिवके बिआहब, मोरि गौरी रहति कुमारि गे माई ,
भुत - प्रेत लै ऐलन बराती, मोर जिय गेल डराई गे माई ,

गालो चुटकल मोछो पाकल, पैरो में बत्तीस बेमाय गे मई ,
गौरी लए भागव गौरी लए परायब, गौरी लय जायव नइहर गे माई ,

भनहिं विद्यापति - सुनू हे मनाइनि, इहो थिका त्रिभुवन नाथ ,
कहत भिखारी दास दोऊ कर जैसी, बस बस होवे विवाह गे माई ,

हम नहिं गौरी शिवके बिआहब, मोरि गौरी रहति कुमारि गे माई ,
भुत - प्रेत लै ऐलन बराती, मोर जिय गेल डराई गे माई .