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पाँच पुकार / हरिवंशराय बच्चन

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गूँजी मदिरालय भर में
लो,'पियो,पियो'की बोली !

१.

संकेत किया यह किसने,
यह किसकी भौहें घूमीं ?
सहसा मधुबालाओं ने
मदभरी सुराही चूमी;
           फिर चली इन्हें सब लेकर,
           होकर प्रतिबिम्बित इनमें,
चेतन का कहना भी क्या,
जड़ दीवारें भी झूमीं,
           सबने ज्योहीं कलि-मुख की
           मृदु अधर पंखुरियाँ खोलीं,
           गूँजी मदिरालय भर में
           लो,'पियो,पियो'की बोली !
 
२.

जिस अमृतमय वाणी के
जड़ में जीवन जग जाता,
रुकता सुनकर वह कैसे ,
रसिकों का दल मदमाता;
           आँखों के आगे पाकर
           अपने जीवन का सपना,
हर एक उसे छूने को
आया निज कर फैलाता;
           पा सत्य,कलोल उठी कर
           मधु के प्यासों की टोली,
           गूँजी मदिरालय भर में
           लो,'बढ़ो,बढ़ो'की बोली !

३.

सारी साधें जीवन की
अधरों में आज समाई,
सुख,शांति जगत् की सारी
छनकर मदिरा में आई,
           इच्छित स्वर्गों की प्रतिमा
           साकार हुई,सखि तुम हो;
अब ध्येय विसुधि,विस्मृत है,
है मुक्ति यही सुखदायी,
           पलभर की चेतनता भी
           अब सह्य नहीं, ओ भोली,
           गूँजी मदिरालय भर में
           लो,'भरो, भरो'की बोली !

४.

मधुघट कंधों से उतरे,
आशा से आँखे चमकीं,
छल-छल कण माणिक मदिरा
प्यालों के अंदर दमकी,
          दानी मधुबालाओं में
          ली झुका सुराही अपनी,
'आरम्भ करो'कहती-सी
मधुगंध चतुर्दिक गमकी,
           आशीष वचन कहने को
           मधुपों की जिह्वा डोली;
           गूँजी मदिरालय भर में
           लो,'पियो,पियो'की बोली !

५.

दो दौर न चल पाए थे
इस तृष्णा के आंगन में,
डूबा मदिरालय सारा
मतवालों के क्रन्दन में;
           यमदूत द्वार पर आया
           ले चलने का परवाना,
गिर-गिर टूटे घट-प्याले,
बुझ दीप गये सब क्षण में;
           सब चले किए सिर नीचे
           ले अरमानो की झोली.
           गूँजी मदिरालय भर में
           लो,'चलो,चलो'की बोली !