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कोहसार /गुलज़ार

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नुचे छीले गए कोहसार ने कोशिश तो की
गिरते हुए इक पेड़ को रोकें,
मगर कुछ लोग कंधे पर उठा कर उसको
पगडंडी के रस्ते ले गये थे--कारखानों में!
फलक को देखता ही रह गया पथराइ आँखों से!

बहुत नोची है मेरी खाल इंसाँ ने,
बहुत छीलें हैं मेरे सर से जंगल उसके तेशों ने,
मेरे दरियाओं,
मेरे आबसारों को बहुत नंगा किया है,
इस हवस आलूद--इंसाँ ने--!!
मेरा सीना तो फट जाता है लावे से,
मगर इंसान का सीना नहीं फटता--
वह पत्थर है-!!!