भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात के उनींदे अरसाते / आलम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 6 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलम }} Category:पद <poeM> रात के उनींदे अरस...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रात के उनींदे अरसाते,मदमाते राते
अति कजरारे दृग तेरे यों सुहात हैं.
तीखी तीखी कोरनि करोरि लेत काढ़े जिउ,
केते भए घायल औ केते तफलात हैं.
ज्यों ज्यों लै सलिल चख 'सेख'धोवै बार बार,
त्यों त्यों बल बुंदन के बार झुकि जात हैं.
कैबर के भाले,कैधौं नाहर नहनवाले,
लोहू के पियासे कहूँ पानी तें आघात हैं?