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रूखी री यह डाल / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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रुखी री यह डाल ,वसन वासन्ती लेगी.
देख खड़ी करती तप अपलक ,
हीरक-सी समीर माला जप .
शैल-सुता अपर्ण - अशना ,
पल्लव -वसना बनेगी-
वसन वासन्ती लेगी.
हार गले पहना फूलों का,
ऋतुपति सकल सुकृत-कूलों का,
स्नेह, सरस भर देगा उर-सर,
स्मर हर को वरेगी .
वसन वासन्ती लेगी.
मधु-व्रत में रत वधू मधुर फल
देगी जग की स्वाद-तोष-दल ,
गरलामृत शिव आशुतोष-बल
विश्व सकल नेगी ,
वसन वासन्ती लेगी.