भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निस-द्यौस खरी उर-माँझ अरी / घनानंद
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:25, 6 अक्टूबर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} Category:पद <poeM> निसि द्यौस खरी...' के साथ नया पन्ना बनाया)
निसि द्यौस खरी उर माँझ अरी छबि रंग भरी मुरि चाहनि की.
तकि मोरनि त्यों चख ढोरि रहैं,ढरिगो हिय ढोरनि बाहनि की.
छत द्वै कटि पै बट प्रान गए गति हों मति में अवगाहिनी की.
घनआँनंद जान लग्यो तब तें जक वागियै मोहि कराहनि की.