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काळ दर काळ / रामस्वरूप परेश
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थां सू पैली गज वदन
मूसक रै गल माल |
पोथी री अैई करे
दुरभिख में रिछपाल |
लम्बोदर लाजां मारां
किंया चढ़ावां भोग |
मूसक ताणी भी नहीं
दाणा के संयोग ?
माँ सुरसत वरदान दे
विनती बारम्बार |
बिथा बखाणूं काळ री
देतूं आखर च्यार |
हंस छोड़ मा आवजे
सुरसत सूनै गांव |
थारे उजले हंस नीं
पड़े काळ री छांव |
बालाजी रै देवरे
रात जगाता लोग |
संवत हो तो म्हे करां
सवामणी रो भोग |
जिण बाढ्या इक बाण सूं
रावण रा दस सीस |
नाम जप्यां जासी नहीं
काळ जको बिन सीस |
चिड़ी कमेडी कागला
गांव गया सै छोड़ |
विपदा में कुण साथ दे
सै ले मूंडो मोड़ |
यह लम्बी कविता (दोहे) है, शेष शीघ्र ही पोस्ट कर दी जाएगी |