गौरैया,
ओ गौरैया,
कौन जाने
कब तूने
चहकना
शुरू किया!
देखा
चहकते-फुदकते
आँगन,
मुंडेर,
दरख्त की डाल
और न जाने कहां-कहां!
अब
उजड़ रहे
आसरे तेरे
तो उजड़ रही दुनिया,
चहक-फुदक
रही बस, स्मृतियों में।
ठहर ओ,
विदा होती रौनक
दुनिया की।
देख, मेरी झोंपड़ी में
किलकता बचपन
पुकारता तुझे।
1990