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कोरी मटकी की ढकणी पर / सत्यनारायण सोनी
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कोरी मटकी की ढकणी पर
हर रोज दुपहरी में
आकर बैठती है यह चिडिय़ा
और थोड़ी-सी चहचहाकर
पांखें खुजाकर
उचककर कर देती है बींठ
और तुम उसे देख
मुस्कुराते-भर हो महज।
मनमौजी !
2012