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जाने कैसे सपनों में खो गई अँखियाँ / शैलेन्द्र
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जाने कैसे सपनों मैं खो गयी अँखियां
मैं तो हूँ जागी मोरी सो गयी अँखियां
अजब दीवानी भई, मोसे अन्जानी भईइ
पल में पराई देखो हो गयी अँखियां
मैं तो हूँ जगी मोरी सो गयी अँखियां
बरसी ये कैसी धारा, काँपे तनमन सारा
रंग से अंग भिगो गयी अँखियां
मैं तो हूँ जगी मोरी सो गयी अँखियां
मन उजियारा छाया, जग उजियारा छाया
जगमग दीप संजो गयी अँखियां
मैं तो हूँ जगी मोरी सो गयी अँखियां
जाने कैसे सपनों मैं खो गयी अँखियां
मैं तो हूँ जगी मोरी सो गयी अँखियां