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तेरी फितरत / शहरयार
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क्या होती है इबादत ये जानती हूँ मैं !
इस दुनियां के सारे रंग पहचानती हूँ मैं !!
मैं रुसवा हो गयी हर गाँव हर गली !
मगर किसकी बदौलत ये जानती हूँ मैं !!
आँखों में दिए आँसू बेचारगी के !
तेरी फितरत अजब है पहचानती हूँ मैं !!
दिया है जिंदगी ने क्या खूब ये सिला !
मेरी अपनी है दौलत सहेजती हूँ मैं !!
अपने दामन को देख के स्याह हो गए हम !
क़त्ल के छीटें कहाँ गिरे है जानती हूँ मैं !!
चले क्यों है उनके अश्कों को पौछ्नें !
आँसू अपनी ही आँख में आंएगे ये जानती हूँ मैं !!
कदम-कदम पर साथ देती हैं तेरी रुसवाईयां !
तेरे नक्श हमें भी छोड़ जायेंगे ये मानती हूँ मैं !!