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रब्बा सच्चिया / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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रब्बा सच्चिया तूँ ते आखिया सी
जा ओए बंदिया जग दा शाह हैं तूँ
साडियाँ नेहमताँ तेरियाँ दौलताँ ने
साडा नैब ते आलीजाह है तूँ

एस लारे ते टोर कद पुछिया ई
कीह ऐस नमाणे ते बीतियाँ ने
कदी सार वी लई ओ रब साइयाँ
तेरे शाह नाल जग की कीतियाँ ने

किते धौंस पुलिस सरकार दी ए
किते धान्दली माल पटवार दी ए
ऐंवें हडडाँ'च कल्पे जान मेरी
जिंवें फाही च' कूंज कुरलावन्दी ए
चंगा शाह बनाया ई रब साइयाँ
पोले खान्देयाँ वार न आंवदी ए

मैंनूँ शाही नईं चाहीदी रब मेरे
मैं ते इज़्ज़त दा टुक्कड़ मंगनाँ हाँ
मैंनूँ ताँहग नईं, महलाँ माड़ीयाँ दी
मैं ते जीवीं दी नग्गर मंगनाँ हाँ

मेरी मन्ने ते तेरियाँ मैं मन्नां
तेरी सौंह जे इक वी गल्ल मोडां
जे इह मंग नईं पुचदी तैं रब्बा
फेर मैं जावाँ ते रब कोई हौर लोडां