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कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है / दीप्ति नवल
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कोई टाँवाँ-टाँवाँ रोशनी है
चाँदनी उतर आयी बर्फ़ीली चोटियोँ से
तमाम वादी गूँजती है बस एक ही सुर में
ख़ामोशी की यह आवाज़
होती है…
तुम कहा करते हो न!
इस क़दर सुकून कि जैसे सच नहीं हो सब
यह रात चुरा ली है मैनें
अपनी ज़िन्दगी से अपने ही लिये