भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं भी अगर पंछी होता / जनार्दन कालीचरण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:10, 9 दिसम्बर 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जनार्दन कालीचरण |संग्रह= }} [[Category:कव...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता
तो बस्ती-बस्ती में फिरता रहता
सुन्दर नग-नद-नालों का यार होता
मस्ती में अपनी झूमता रहता । मैं भी अगर …
आदमी का गुण मुझ में न होता
ईर्ष्या की आग में न जलाता होता
स्वार्थ के युद्ध में न मरता-मारता
बम्ब-मिसाइल की वर्षा न करता । मैं भी अगर…
आंखों में दौलत का काजल न पुतता
शान के लिए पराया माल न हड़पता
हर मानव मेरा हित-बंधु होता
रंग-रूप पर अपना गर्व करता । मैं भी अगर…
तब सारा जग मेरा अपना होता
पासपोर्ट-वीज़ा कोई न खोजता
स्वच्छन्द वन-वन में घूमता होता
विश्व –भर मेरा अपना राज्य होता । मैं भी अगर …
प्यार के गीत जन-जन को सुनाता
आवाज़ से अपनी सब को लुभाता
मानवता की वेदी पर सिर झुकाता
सागर की उर्मिल का झूला झूलता ।
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता ।।