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सत्कार / मुनीश्वरलाल चिन्तामणि

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उस ज़माने की बात करना चाहूँगा मैं
जब गाय के गोबर से
लीपा हुआ होता था मेरा घर ।
तब अतिथियों के लिए
मेरे घर का द्वार खुला था ।
या यों कहिए;
अतिथियों के लिए
मेरे घर का आँगन कंचन था ।
मेरे घर का द्वार चन्दन था ।
किंतु जब समृद्धि घर में आई
तब पक्का मकान बनवा डाला ।
और तब से मेरे घर का द्वार
अतिथियों के लिए प्राय: बन्द रहता है ।
अब अपने घर के आँगन को मैंने
कँटीले तारों से घिरवा लिया है ।