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मैं जीना चाहती हूँ / सुमति बूधन

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एक
पल-पल घर बने अपना ,
जहाँ रिश्ते रिसते न हो,
जहाँ प्यार के रंग बिखरे हों
मैं पल-पल रंगना चाहती हूँ
मैं जीना चाहती हूँ ।

एक संसार बसे अपना,
जहाँ साँसें घुटती न हों,
जहाँ मुक्तता में भी बंधन हो,
जहाँ बंधन में भी मुक्तता हो ।
मैं पल-पल बँधना चाहती हूँ ।
मैं पल-पल जीना चाहती हूँ ।

एक आँगन सजे अपना,
जहाँ चिड़ियों की चहचहाहट हो,
जहाँ भँवरों की गूँजन हो,
जहाँ फूलों को खिलने की चाहत हो ।
मैं पल-पल महकना चाहती हूँ।
मैं पल-पल जीना चाहती हूँ।

एक गीत गूँजे अपना,
जहाँ ज़िन्दगी की सूर हो,
जहाँ खुशियों की ताल हो,
मैं पल-पल गुनगुनाना चाहती हूँ।
मैं पल-पल जीना चाहती हूँ ।

एक चिराग जले अपना,
जहाँ प्रेम की बाती प्रज्वलित हो,
जहाँ विश्वास की लौ जलती हो।
जहाँ हर आँच पर आँचल फैला हो।
मैं पल-पल जलना चाहती हूँ।
मैं पल-पल जीना चाहती हूँ।