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पड़ोस की नदी / कुमार अनुपम

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बेधड़क वह मिलने चली आती है घर में और मैं छत पर भागता हूँ परिवार समेत
सारा असबाब बत्तखों की तरह भागता-फिरता है घर-बाहर

उसकी तरह ही घर में दाख़िल होती है राप्ती
हाँ वही अचिरावती...