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काशी का न्याय / श्रीकांत वर्मा
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सभा बरखास्त हो चुकी
सभासद चलें
जो होना था सो हुआ
अब हम, मुँह क्यों लटकाए हुए हैं?
क्या कशमकश है?
किससे डर रहे हैं?
फैसला हमने नहीं लिया -
सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नहीं होता
हमने तो सोच-विचार तक नहीं किया
बहसियों ने बहस की
हमने क्या किया?
हमारा क्या दोष?
न हम सभा बुलाते हैं
न फैसला सुनाते हैं
वर्ष में एक बार
काशी आते हैं -
सिर्फ यह कहने के लिए
कि सभा बुलाने की भी आवश्यकता नहीं
हर व्यक्ति का फैसला
जन्म के पहले हो चुका है।