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इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल / ज़फ़र
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इश्क़ तो मुश्किल है ऐ दिल कौन कहता सहल है
लेक नादानी से अपनी तू ने समझा सहल है.
गर खुले दिल की गिरह तुझ से तो हम जानें तुझे
ऐ सबा ग़ुंचे का उक़दा खोल देना सहल है.
हम-दमो दिल के लगाने में कहो लगता है क्या
पर छुड़ाना इस का मुश्किल है लगाना सहल है.
गरचे मुश्किल है बहुत मेरा इलाज-ए-दर्द-ए-दिल
पर जो तू चाहे तो ऐ रश्क-ए-मसीहा सहल है.
है बहुत दुश्वार मरना ये सुना करते थे हम
पर जुदाई में तेरी हम ने जो देखा सहल है.
शम्मा ने जल कर जलाया बज़्म में परवाने को
बिन जले अपने जलाना क्या किसी का सहल है.
इश्क़ का रस्ता सरासर है दम-ए-शमशीर पर
बुल-हवस इस राह में रखना क़दम क्या सहल है.
ऐ ‘ज़फ़र’ कुछ हो सके तो फ़िक्र कर उक़बा का तू
कर न दुनिया का तरद्दुद कार-ए-दुन्या सहल है.