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अश्क बहने दे यूँ ही / गणेश बिहारी 'तर्ज़'
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अश्क बहने दे यूँ ही
लज्ज़ते ग़म कम न कर
अजनबियत भी बरत
फासला भी कम न कर
पी के कुछ राहत मिले
ज़हर को मरहम न कर