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निज़ामुद्दीन-14 / देवी प्रसाद मिश्र
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सबकी तरफ़ से लिखने का अंजाम देख लो ।
ये काम कितना बढ़ गया ये काम देख लो ।
कितना ही कहा कह गए तो कितना कम,
कहा कहने को हुआ नाम तो ये नाम देख लो ।
बाज़ार में भी बैठ गए और कहा जी,
जो लग गए वो दाम ज़रा दाम देख लो ।
सबकी तरफ़ से बोलने का रोज़गार ये,
हमको जो देखो देख कर नाकाम देख लो ।
मकसद है कोई और तो फिर सोचना फिजूल,
जो सुबह-सी दिख जाए तो ये शाम देख लो ।
अब मार्क्स हो कि माल हो कि कर सको बहस,
अब लालगढ़ को देख लो, आवाम देख लो ।
जो गिर गई मस्जिद तो अब आराम बहुत हो,
अब रह रहे हैं राम तो बदनाम देख लो ।